Namaz ka tarika : Namaz इस्लाम में एक बहुत महत्वपूर्ण फर्ज अमल है। यह हर मर्द और औरत पर फर्ज है। नमाज का हुक्म कुरान में अल्लाह ताआला की तरफ से दिया गया है। कुरान में नमाज की अहमियत और फर्ज होने का जिक्र सूरह आल-बकराह की 43 आयत में किया गया है। नमाज इस्लाम का एक संक्षिप्त रूप है, जो मुसलमानों के लिए रोज़ी, बरकत, और हिदायत का माध्यम है।
Namaz Padhne Ke Liye Sahi sharaiet – Namaz ka tarika
- बदन का पाक होना
- कपड़ा का पाक होना
- जगह का पाक होना
- सतर का छुपा हुआ होना
- सही वक्त में नमाज पढ़ना
- किबले की तरफ मुंह होना
Table of Contents
Namaz ka tarika
1. बदन का पाक होना
Namaz ka tarika : नमाज़ पढ़ने के लिए सबसे महत्वपूर्ण शर्तों में से एक यह है कि शरीर का पाक होना। यदि आपकी गुसल टूट जाती है, तो आपको गुसल करना पड़ेगा, और अगर आपकी वजू टूट जाती है, तो आपको वजू करना होगा। नमाज़ शुरू करने से पहले इन बातों का ध्यान रखना जरूरी है। गुसल और वजू करने का सही तरीका जानने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें।
2. कपड़े का पाक होना
Namaz ka tarika : नमाज़ पढ़ने की दूसरी शर्त है कपड़ों का पाक होना। कपड़ों का पाक होना मतलब है कि उन पर कोई नापाक चीज़ नहीं लगी हो। जैसे कि पेशाब, पखाना, मणि या अन्य नापाक चीज़ें। ऐसी स्थिति में आपको अपने कपड़े बदलने पड़ेंगे। इसलिए नमाज़ में खड़े होने से पहले इन बातों का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है।
3. जगह का पाक होना
Namaz ka tarika : नमाज़ पढ़ने के लिए तीसरी शर्त है कि जगह पाक हो। इसलिए जिस जगह पर आप नमाज़ पढ़ने के लिए खड़े हैं, उस जगह की अच्छी तरह से जांच कर लें कि वहां कोई नपाक चीजें न हों। इसी वजह से उलमा केराम मुसल्ले का इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं।
4. सतर का छुपा हुआ होना
Namaz ka tarika : नमाज़ के लिए तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण शर्त है सतर का छुपा होना। मर्दों के लिए नाभी से लेकर टखने तक कपड़ा ढका होना चाहिए। औरतों के लिए पूरा शरीर, सिर से लेकर पैर तक, ढका होना जरूरी है। नमाज़ से पहले इन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है।
5. सही वक्त में नमाज पढ़ना
Namaz ka tarika : किसी भी नमाज़ अदा करने से पहले उस नमाज़ का सही वक्त जान लेना जरूरी है। सहाबा एकराम उस वक्त में सूरज की ढलान और उगने के हिसाब से नमाज़ का सही वक्त तय करते थे। लेकिन आज के आधुनिक जमाने में हमारे पास कई सुविधाएं हैं। जैसे, आप साल भर की नमाज़ के वक्त की किताब आसानी से प्राप्त कर सकते हैं। इसके अलावा, आप इंटरनेट की मदद भी ले सकते हैं।
कुछ ऐसी वेबसाइटें हैं जो आपकी लोकेशन के अनुसार सही वक्त बताती हैं। जैसे असर की नमाज़ के वक्त का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है क्योंकि इसके लिए दो अलग-अलग समय होते हैं। हनाफी मज़हब के अनुसार, असर की नमाज़ का सही समय देरी के बाद होता है। इसलिए, आप उस समय पर असर की नमाज़ अदा कर सकते हैं।
6. किबले की तरफ रुख करना
Namaz ka tarika : नमाज़ की बाकी फराइज़ मे से सबसे एहम फर्ज किबले की तरफ रुख करना है। अगर नमाज़ मे आपका रुख गलत हो तो आपकी नमाज़ बातिल हो जाएगी। इसलिए आपको किबले की सही रुख का इल्म होना जरूरी है।
Namaz ka tarika। नमाज़ के अंदर कुल सात फ़र्ज़ हैं। सभी फ़र्ज़ों पर नीचे एक-एक करके चर्चा की गई है। कृपया ध्यान से पढ़ें और नमाज़ को सही तरीके से अदा करें।
Namaz Ki Andar Ki Farz ( Namaz ka tarika )
नमाज की नियत करना
नमाज की फराइजों में नमाज की नियत करना एक फर्ज है। नियत का मतलब यह नहीं है कि आपको मुंह से बोलकर कहना पड़े कि “मैं फलाह वक्त की नमाज के लिए किबला की तरफ रुख कर पढ़ रहा हूँ।” बस दिल में यह जानना जरूरी है कि आप कौन सी नमाज अदा कर रहे हैं।
तकबीरे तहरीमा बोलना
नमाज में तकबीरे तहरीमा बोलना एक महत्वपूर्ण फर्ज है। तकबीरे तहरीमा का अर्थ है ‘अल्लाह हु अकबर’ कहकर नमाज की शुरुआत करना। यह नमाज की पहली तकबीर होती है और इसे ‘नमाज की तहरीमा’ भी कहा जाता है। जब इमाम या नमाज पढ़ने वाला “अल्लाहु अकबर” कहता है, तो सभी नमाजी इसे सुनते हैं और अपने हाथ कानों तक उठाते हैं। यदि कोई व्यक्ति अकेले नमाज अदा कर रहा हो, तो उसके लिए भी मुंह से तकबीरे तहरीमा बोलना बहुत जरूरी है। अगर कोई जानबूझकर तकबीरे तहरीमा नहीं बोलता है, तो उसकी नमाज मान्य नहीं होगी।
क़ियाम करना (खड़े होना)
कियाम करना नमाज का दूसरा फर्ज है, जो नियत के बाद आता है। कियाम का मतलब है कि नमाज़ के दौरान सीधे खड़े होना, ताकि आपके लटके हुए हाथ घुटनों तक न पहुँचें। यह नमाज़ का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, क्योंकि कियाम के दौरान आप अल्लाह के सामने इबादत करते हैं। इस समय आप अपने हाथों को नाभी के बराबर बांध सकते हैं। कियाम करते समय बिना किसी मजबूरी के आप नमाज बैठकर नहीं पढ़ सकते।
क़िरात करना
“किरात करना” नमाज का एक महत्वपूर्ण फर्ज है। किरात का अर्थ है कि खड़े होकर नमाज में सूरह फातिहा और कुछ आयतें पढ़ना। यदि आप जमात के साथ नमाज अदा कर रहे हैं, तो आपको ध्यान से इमाम की किरात सुननी चाहिए। फ़र्ज़ नमाज़ में मुक़तदी को कुछ नहीं पढ़ना होता है (मुक़तदी वह होता है जो इमाम के पीछे नमाज़ पढ़ता है)। आपको सूरह फातिहा या अन्य आयतें नहीं पढ़नी हैं, क्योंकि इमाम की किरात ही मुक़तदी के लिए पर्याप्त होती है।
नमाज को अकेले पढ़ते समय, आपको आयतें धीमी आवाज में पढ़नी चाहिए ताकि आप खुद को सुन सकें। किरात में कुरान शरीफ की आयतों को इतना जोर से नहीं पढ़ना चाहिए कि आपके बगल में खड़े व्यक्ति को सुनाई दे, बल्कि आपको आराम से और धीमी आवाज में पढ़ना चाहिए।
रुकू करना
नमाज के दौरान रुकू करना एक महत्वपूर्ण फर्ज है। रुकू में आपको अपनी कमर को थोड़ा झुकाना होता है, जिसे ‘रुकू’ कहा जाता है। यदि आपकी कमर पूरी तरह से सीधी नहीं होती और थोड़ी झुक जाती है, तो भी रुकू मान्य हो जाता है। रुकू का अर्थ है थोड़ा झुकना, इसलिए यह फर्ज थोड़ी झुकाई में होता है।
हालांकि, नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की सुन्नत यह है कि वे रुकू में पूरी तरह से कमर को झुकाते थे और इत्मीनान से कम से कम तीन बार “सुब्हान रब्बिल अजीम” पढ़ते थे। यदि आप जल्दी रुकू में जाते हैं, तो भी नमाज़ मान्य होती है, लेकिन बेहतर यही है कि आप इसे इत्मीनान से करें। कमर को सीधा करना चाहिए और कम से कम तीन बार “सुब्हान रब्बिल अजीम” पढ़ना चाहिए, यही रुकू का सही और सुन्नत तरीका है।
सजदा करना
नमाज में सजदा करना एक महत्वपूर्ण फर्ज है। हर रकात में दो बार सजदा करना अनिवार्य है। सजदे के दौरान, आपको जमीन पर झुककर दोनों हाथों को जमीन पर रखना होता है, और उनके बीच में अपनी पेशानी और नाक को भी जमीन पर रखकर कम से कम तीन बार “सुभाना रब्बियाल अला” कहना चाहिए।
- नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की फरमान है सजदे में बंदे अल्लाह ताअला की सबसे करीब होते हैं।
- सजदे में पहले आपके दो घुटना, उसके बाद दो हाथ, उसके बाद नाक फिर पेशानी को जमीन पर रखना होता है।
- नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की हुकुम है सजदे में जो दोनों पहलू है वह आपसे अलग होनी चाहिए ।
- सजदा आपको खूब मूसादा तरीके से करनी चाहिए। और कमर उठी हुई रहे । इजमासे एह बात साबित है कि मर्द को खुलकर सजदा करनी चाहिए और औरत को सीमट कर सजदा करनी चाहिए।
- अगर आप जमात के साथ नमाज पढ़ते हैं तो खुलकर सजदा करने की मुमकिन हो तो खुलकर सजदा करें। अगर खुलकर सजदा करने की मुमकिन न हो, तो बाजू समेट कर सजदा किया जा सकता है।
क़ादा-ए-आख़ीरा (आख़िरी रकअत में बैठना)
“कादा ए आखिरा” नमाज का एक महत्वपूर्ण फर्ज है। इसका अर्थ है कि किसी भी नमाज की आखिरी रक’त में बैठना, चाहे वह फर्ज, सुन्नत, वाजिब, या नफ़िल नमाज हो। यह फर्ज सभी प्रकार की नमाज के अंत में किया जाता है, चाहे वह दो रकात, तीन रकात, या चार रकात की हो। यह नमाज की ताकीद का एक अहम हिस्सा है। जब हम नमाज के अंत में बैठते हैं, तो इसे “कादा ए आखिरा” कहा जाता है।
“क़ादा-ए-आख़ीरा” करने की तरीका:
- सबसे पहले अत्ताहियत पढ़नी चाहिए।
- उसके बाद “दुरूद इब्राहीम” पढ़ना चाहिए।
- आख़री में, दुआ मासूरा पढ़ना चाहिए।
ख़ुरूज बेसुनऐही (सलाम फेरना)
“खुरूज बेसुन्ऐही या सलाम फेरना” नमाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। सलाम फेरने का तरीका यह है: पहले आप “अस्सलामु अलैकुम वरहमतुल्लाह” कहें, फिर दाईं ओर मुंह फेरें, और फिर “अस्सलामु अलैकुम वरहमतुल्लाह” कहकर बाईं ओर मुंह फेरें। इस तरह आपकी नमाज पूरी हो जाएगी।
Namaz ka tarika
ओर पढ़े